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2024 शारदीय नवरात्र: अष्टमी और नवमी एक दिन, दिव्य संयोग पर मां महागौरी के साथ माता सिद्धिदात्री का भी पूजन

पंडित लोकनाथ शास्त्री

वाराणसी: 2024 में शारदीय नवरात्र का अष्टमी और नवमी का पर्व 11 अक्टूबर को एक ही दिन मनाया जाएगा। इस दिन मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री का पूजन विशेष रूप से किया जाएगा। इस दिन माता महागौरी और माता सिद्धिदात्री की पूजा के साथ कन्या पूजन का भी विधान रहेगा। आइए जानते हैं इन देवी रूपों के महत्त्व, पूजन विधि और उनसे जुड़ी कथाएँ।


माँ महागौरी: तपस्या और शुद्धता की देवी

महागौरी का पूजन और उनका स्वरूप


माँ महागौरी का पूजन अष्टमी तिथि को किया जाता है। शिवपुराण के अनुसार, आठ साल की आयु में देवी महागौरी को अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का ज्ञान हो गया था। उन्होंने तभी भगवान शिव को अपना पति मान लिया और तपस्या शुरू कर दी। उनकी कठोर तपस्या के कारण वे महागौरी के नाम से जानी गईं।

महागौरी का वर्ण सफेद है, और उनका वाहन वृषभ है। उनके चार हाथ हैं, जिनमें एक हाथ अभयमुद्रा में है, दूसरा वरमुद्रा में, तीसरे में त्रिशूल और चौथे में डमरू है। डमरू धारण करने के कारण उन्हें शिवा के नाम से भी जाना जाता है। उनकी शांति और सौम्यता का विशेष महत्त्व है।

महागौरी की कथा


देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती ने कठोर तपस्या के दौरान केवल कंदमूल और फल खाए, और बाद में केवल वायु का ही आहार किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें गंगा में स्नान करने के लिए कहा। स्नान के बाद उनका स्वरूप उज्ज्वल चंद्र के समान हो गया, जिससे वे महागौरी कहलाईं। माँ महागौरी अपने भक्तों की सभी समस्याओं का निवारण करती हैं और उनका कल्याण करती हैं।

महागौरी की पूजा विधि


अष्टमी तिथि पर महागौरी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है। पूजा के दौरान माँ को गुलाबी रंग की चुनरी अर्पित करें, क्योंकि यह रंग प्रेम और सौम्यता का प्रतीक है। पूजा में नारियल का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में नारियल वितरित करें। कन्या पूजन भी इस दिन विशेष होता है। 9 कन्याओं का पूजन उत्तम माना जाता है, लेकिन कम से कम दो कन्याओं का पूजन भी किया जा सकता है।


माँ सिद्धिदात्री: अष्ट सिद्धियों की दात्री

माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप और पूजन


नवमी तिथि को माँ सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। वे चार भुजाओं वाली देवी हैं, जो कमल के आसन पर विराजमान होती हैं। उनके हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल होता है। लाल साड़ी और मुकुट धारण किए माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को अष्ट सिद्धियों और नव निधियों का वरदान देती हैं।

माँ सिद्धिदात्री की कथा


पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की कृपा से ही अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी आठ सिद्धियाँ प्राप्त कीं। इन सिद्धियों के कारण ही शिवजी को अर्धनारीश्वर का रूप प्राप्त हुआ। माँ सिद्धिदात्री की पूजा से भक्तों को भी अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, और उनका विवेक और बुद्धि बढ़ती है।

कैसे करें माँ सिद्धिदात्री की पूजा


माँ सिद्धिदात्री की पूजा में घी का दीपक जलाकर, कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। पूजा के बाद जो भी भोजन या फल अर्पित करें, उसे लाल वस्त्र में लपेट कर दें। निर्धनों को भोजन कराने के बाद ही भोजन ग्रहण करें। यह दिन साधकों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि माँ सिद्धिदात्री की कृपा से वे आठ सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं।


कन्या पूजन का महत्त्व

अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्त्व होता है। कुछ भक्त अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं, जबकि कुछ नवमी के दिन। पूजन के लिए 9 कन्याओं का समूह उत्तम होता है, लेकिन दो कन्याओं के साथ भी पूजा की जा सकती है। इस दिन हलवा, पूड़ी, सब्जी और काले चने का विशेष भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद इन कन्याओं को भोजन कराकर उपहार दिए जाते हैं।


विधि-विधान

2024 शारदीय नवरात्र का अष्टमी और नवमी एक ही दिन 11 अक्टूबर को पड़ रहा है, जिससे यह दिन विशेष महत्त्व रखता है। माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाएगी। साथ ही कन्या पूजन का विधान भी इस दिन रहेगा। भक्तजन इस दिन माता की कृपा प्राप्त करने के लिए पूरे श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करेंगे।

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